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१२६ श्रीमद्वीरविजयोपाध्याय कृतदान शील तप नावना चौविध । धर्मकी थापना कीध ॥ लागी ॥२॥ दश छादश विध साधु श्राझके । देशना धर्मकी दीध । लागी० ॥३॥ जगत जंतु उकारण खातर । मारग कीया रे प्रसिद्ध ॥ लागी ॥ ४ ॥ धर्मनाथ जिन धर्म प्रकाशी । जगमें बहु जश लीध ॥ लागी ॥५॥ वीरविजय आतम पद लेवा । धर्म सुण्यानी रे प्रीत ॥ लागी० ॥ ६॥
श्रीशांतिनाथ जिन स्तवन ।
॥राग देश सोरठ॥ प्रनु शांति जिनंद सुखकारी, घट अंतर करुणाधारी ॥ प्रजु । आंकणी ॥ विश्वसेन अचिराजीको नंदन, कर्म कलंक निवारी । अलख अगोचर अकल अमर तुं, मृगलंबन पदधारी ॥प्र० ॥ १॥ कंचन वरण शोना तनु सुंदर, मूरती मोहन गारी । पंचमो चक्री सोलमो जिनवर, रोग शोग जय वारी ॥ प्रजु ॥ ॥ पारापत प्रनु शरण ग्रहीने, अजय दान लीयो जारी । हम प्रत्न शांति जिनेश्वर नामे,