________________
९२
श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत
स्करं ॥ अष्टापदे सम्मेत चंपा नेम गढ गिरि मंगना, श्री वीर पावा विमल गिरिवर केसरा दुख मना ॥ १ ॥ आबु तरंगा दरस चंगा शिवगंगा कारणा, श्री अंतरिक्ष जिनंद पारस थंजणा दुख वारणा || संखेसरा अलवेसरा जग पावना जीरावला, चिंतामणि फलवद्धि पारस मल्लि जवदधि नावला || २ || वरकाण राण नमौल नगरे वीर घाणे गोमीए, श्री नामुलाइसु वीर राता वंदीए जव तोमीए ॥ श्री पाली पाट राजनगरे घनौघ मंगन पासजी, इम जेह थानक चैत्य जिनवर जविक पूरे सजी ॥ ३ ॥ सहु साधु गणधर केवली फुन संघ जव जल तारणा, सुध ज्ञान दरसन चरण साचा महानंदे कारणा । यह तीर्थ वंदन जब निकंदन जविक शुध मन कीजीए, निज रूप धारो नरम फारो अनघ आतम लीजीए ॥ ४ ॥
॥ इति स्तवनानि समाप्तानि ॥
तीन एक