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स्तवनावली। सुख कंदा रे, शीतलकी हुँ बलिहारी, नेमीश्वर राजुल तारी, श्रीमंदिर आनंदकारी ॥ जिनंदा ॥६॥ वीरजिन दाता रे, करो मुज शाता रे, प्रनु तुं तारक मुज केरा, करुणानिधि स्वामी मेरा, हुं शासन मानुं तेरा ॥ जिनंदा० ॥७॥ शरणागत तोरी रे, नहीं अन्य गति मोरी रे, तुम नाम तणा आधारा, तुम सिमर सिमर सिरिकारा, तुम वीरहो उखम आरा ॥ जिनंदा ॥ ॥ संघ मन हरना रे, श्रदय निधि नरना रे, नायक श्री मूल जिनंदा, राधणपुर नगर सुहंदा, सहु संघने मोद करंदा। जिनदा॥ ए॥ राधणपुर वासो रे, मास चार रही खासो रे, सहु संघ मने आनंदी, लव ब्रांती सब ही नीकंदी, चवीसें जिनवर वंदी। जिनंदा ॥ १० ॥ अंबुनिधि वेदा रे, अंक इं निखेदा रे, संवत आयो सुखकारी, द्वाविंशती मुनि मनोहारी, सहु निज आतम हितकारी ॥ जिनंदा ॥ ११ ॥
॥अथ तीर्थ वंदनम् ॥ बिहरमान जिनंदवंडु उदित केवल नास्कर, असंख लोक निवास प्रजुना शाश्वता अघ ना