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________________ सज्झायो । १८१ 1 राजजी केरा । चरणमें चित्त हे मेरा । सेवक कहे वीर कर जोडी । लंघावो पार मुज बेमी ॥ विजे० ॥ ६ ॥ कर्मविपाक सज्जाय । ॥ अडल छंद ॥ 1 श्रीगुरु विजयानंद चंद वंदन करी । सुनो करमकी बात कहुं गुरुसे लही । सब दुःख देवनहार करम दुष्कृत तजो । शासन के सिरदार श्री वीर चरण जजो ॥ १ ॥ तीर्थकर बल चक्री हरि नृप जे थया । कर्मणे वस तेह सवी संकट लीया । आदीसर अरिहंत संत अनंत बली । एक वरस बिन आहार मुख त रिषा सही || २ || विप्र घरे अवतार वीर विजूने लीया । करम न बोने लिगार पूरव जो मद कीया । चक्री सनतकुमार रोग बहुला नही । करमती गत जाय कहो ते किम कही ॥ ३ ॥ लक्ष्मण राजन रामचंद्र सीता सती । बार वरस वनवास दुष्ट करमगति । द्वारावती जयी दाहसें कृष्ण जादवपति । लंकाचष्ट लंकेश करमगति नहीं मिटी ॥ ४ ॥ पांशुराय के पुत्र पंच पांव जला । हारी द्रुपदी नार प्रगट खेमी जुवा । बार वरस वनवास दासपणे ।
SR No.010687
Book TitleAtmanand Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherBabu Saremal Surana
Publication Year1917
Total Pages311
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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