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१८२ श्रीमद्वीरविजयोपाध्याय कृत-- ते रही । करम न करशो कोई.बात प्रजुने कही ॥५॥ सती सुजना नार पूजी अंजना सती । करम तणे परजाव कलंक चमयो अति । चारों चौट बिच विकी चंदना सती । करम विना कहो कौन करे ऐसी गति॥६॥ राजा हरिचंद निच घरे नोकरी करे। राणी सुतारा निच घरे पानी नरे। सती सीरदार दोनुने दुःख लघु। करम मरम सब जाणजो सिद्धांते कां ॥७॥ ऐसें करम. विपाक देखी जवसें मरो । दुखके देवनहार करम कोई ना करो । ए उपदेश है लेश नवी जो चित्त धरे । वीरविजय कहे तेह नवी नवजल तरे ॥ ७ ॥ संवत् ओगनिसे साल तेवंजा मन रली । आसो सुदिकी त्रिज तिथी नयी निरमली। नगर स्यारपुर बिच चौमासुं रही करी। करम कथा कही एह सुनो सब दिल धरी ॥ ए॥
॥त्याग सज्काय ॥ तुम बोमो जगतके यारा | श्नसें नहीं हो निस्तारा ॥ आंकणी ॥ धन कण कंचनकी कोमी। गये वझेबमे सब ठगेमी । सुत मात तात अरु जात। जगतके छाप, अंतमें न्यारा ॥ इन ! १ ॥ ए