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१९८ श्रीमदुदयरत्नजी कृत-- को पुण्य कलोलथी अवसर में, आज लह्योरे । ॥ जूण् ॥५॥ श्रीवासुपूज्यने वंदतां सघलो, उख दह्योरे । उदयरत्न प्रजु अंगीकरीने, बांहि ग्रह्यो रे ॥ जू० ॥३॥
श्रीविमल जिन गीत ॥ विमल ताहरं रूप जोतां, रढ लागीरे । मुखमां गयां विसरीने, नूखमी नागीरे॥विण॥९॥ कुमतिये माहरी केम तजी, सुमति जागीरे । क्रोध मान माया लोने, शीख मागीरे ॥ वि०॥ ॥२॥ पंच विषय विकारनो हवे, थयो त्यागीरे। उदयरत्न कहे आजयी हुँ तो, ताहरो रागीरे ॥ विण ॥३॥
श्रीअनंत जिन गीत ॥ अनंत ताहरा मुखमा उपर, वारी जाउरे । मुगतनी मुने मोज दीजे, गुण गाजरे ॥अ० ॥१॥ एक रसो हुँ तलसु तुने, ध्यान ध्याउरे । तुज मिलवाने कारण ताहरो, दास थारे ॥ अ॥२॥ जजन ताहरो नवो जव, चित्तमां चाहुरे । उदय रत्न प्रजु जो मिले तो, डेमो साहुरे ॥ ॥३॥