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१५२ श्रीमद्वार विजयोपाध्याय कृतनहीं कुमतिके मन नाई। दुवे दुरगत के सहाई ॥ श्री० ॥ ३ ॥ कुपंथ जिनोने धारे । दुरगतिमें गये बिचारे । जिने तुम आज्ञा नहीं कीनी। तिने पाप पोट सीर लीनी ॥श्री० ॥४॥ अमृतसर मंझण स्वामी । घट घटमें तुं विसरामी। तोरी आज्ञा सिर पर धारी । हुँ वेग वरं शिव नारी ॥ श्री० ॥ ५॥ निधि युग निधि छ वरसे, मास कार्तिक शुक्ल पक्ष । तिथि प्रतिपदा गुण गाया । ए वीरविजय सुख दाया ॥ श्री० ॥६॥
॥अथ अमृतसर मंमन शीतल जिन
स्तवन ॥ चलो खेलिये होरी । शीतल जिन नाथ जयोरी ॥ च० ॥ आंकणी ॥ आये वसंत फूली वनराजी । नमर गुंजार नयोरी । माकंद मंजर सुंदर चारवी । कोकिल शोर थयोरी । मेरो मन अति उलस्योरी ॥च॥१॥ मोघर चंपक केतकी फुली । और फुली चित्रवेली । चंबेली मुचकुंद ज फुली । दमनक कलियां मोरी। प्रजु की पूजा रचोरी ।। च ॥२॥ कुसुमाचरण करी प्रनु पूजो ।