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स्तवनावली ।
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पूरण सुरतरु कंद | कठिन करमका काटे फंद अरज करूं प्रति नाग्य मंद | कुछ दया दिल ल्यावोरे ॥ वा० ॥ २ ॥ फसियो मोह दशा महा फंद । अब काढो प्रभु करुणावंत । चरण शरण मागुं
मंद। क्युं देर लगावोरे ॥ वा० ॥ ३ ॥ तारक प्रभुजी जग जयवंत । तार्ये तुमने संत अनंत । मुज कीरपा कीजो जदंत । निज बिरुद संजाबोरे || वा० ॥ ४ ॥ जव जव जमियो में जगवंत । तुम दरिशण बिन काल अनंत | नगर दुस्यारपुरेमें चंग, प्रभु दरिशण पायोरे ॥ वा० ॥ ५ ॥ संवत् नेत्र बाण निधि चंद, आसु शुक्ल द्वितीया दिन चंग । वीरविजय मांगे अभंग | आतम पद दी ज्यो रे || वा० ॥ ६॥
श्री अमृतसर मंमन पर जिन स्तवन ।
श्री अर जिन अंतर जामी । तुमसे कहुं सीर नामी । करुणा दृग् मोये करना | ज्युं वेगे हुवे तरनाजी ॥ श्री० ॥ १ ॥ लेत माल खजाना । नहीं मागुं त्रिभुवन राना । मन नमरेकुं ए आशा । तुज पद पंकज में वासा ॥ श्री० ॥ २ ॥ ए डुषम काल दुःख दाई । तुज मुरती है सुख दाई ।