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श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत
अजित जिनेसर, मुनि सुव्रत चित धार | चंद्र प्रभु श्रीवीर जिनेसर, शासनके सिरदार | चिं० ॥ २ ॥ एक छक प्रभु लोह कंकण लइ, नूपति अंग संग कार ॥ वचन युक्तिसें हैम हुआ है, येह शक्ति संसार || चिं० ॥ ३ ॥ चिंतामणि तुम नाम धरावो, चिंतत किम नही कार || सेवकने विलविलता देखी, अपना नाम संचार || चिं० ॥४॥ चमत चमत चिंतामणि पायो, रामनगरमें सार ॥ पांच सेवक प्रभु पांच जिनेसर, पंचमी गति द्यो सार ॥ चिं० ॥ ५ ॥ संवत जुवन जुर्वेन निधिं दधिसुंत, आश्विन मास अतिसार ॥ कर्मवाटी प्रतिपदि गुण गाया, कर आतम उद्धार | चिं० ॥ ६ ॥
स्तवन एकवी शभुं ।
॥ राग प्रभाति ॥
पारस नाथ दया कर मोपर, नवसागरथी पार उतारो || पा० ॥ १ ॥ अवर देव सव त्याग करीने, सरण लियो प्रभु व में थारो || पा० ॥ २ ॥ काशी देश वनारसी नगरी, जिहां लियो है प्रभु अवतारो || पा० || ३ || अश्वसेन वामा