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स्तवनावली । रस राच्यो, नाच्यो अनादि अपारा ॥ माता उदर कूप रस कसमल, मनुष जनम मैं निकसे, पुन्य उदय रखवारा ॥ कुमता वास आस मत कीजो, जिम ललितांग कुमारा ॥ शि ॥३॥ अतर अवीर जैन वच नीके, फुनी निज अंग सुधारा ॥ सुमता रंग करो निज तनु, नेटो पास कुमारा ॥ शि०॥ ४ ॥ किहां होसी वो नाथ निरंजन, श्म ढूंढत जग सारा ॥ गोघा मंगण सब दुख खंमप, मिलीयो प्रेम प्यारा ॥ शिण ॥ ५॥ दुकम प्रनुके शिवपद माग्यो, अव क्यों ढील उदारा ॥ संवत शशि निधि अग्नि नेत्र ज्यू, तूगे पास कुमारा ॥ शि० ॥ ६ ॥ संतोष मुनिने हर्ष संघको, मास रह्या जिहां चारा ॥ शिव वधू निश्चे हुकम पास के, आनंद मंगल चारा ॥ शि० ॥ ७॥
॥ स्तवन वीसमुं॥
॥ चाल सरवणकी ॥ यव मोहे पार उतार, चिंतामणि अव मोहे ॥ रामनगर मंगण मुख खमण, अवर न कोश् याधार ॥ चिं० ॥ १ ॥ आस पास प्रनु