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ॐ उदारता अने धर्मबुद्धिना समुज्ज्वल दृष्टांतो पुरा पाडेछे अने ते उपरांत, जेओ चतुर्थव्रत धारी रही, संयम-नियमनी सुंदरताना पाठो परिचयीओने पुरा पाडेछे, तेमने धन्यवाद आप्या विना केम रही शकाय ? शासनदेव एवा धर्मप्रेमी सहायको, वाचको अने उत्तेजको श्रेयः करो।।
द्वितीयावृत्तिमां भूल के भ्रांन्तिने स्थल न होय, छतां अमारावाचकोनी उदारता उपर विश्वास राखी कहीए छीए के
"करजो माफ अमारी पामर भ्रांतिओ, दिनचर्यामां प्रतिपगले जे थाय जो, मेहेमानो ओ स्नेहे आ स्वीकारनो।"
वनारस द्वितीय भाद्रपद शुक्ल प्रतिपत् ।
कर्पूरविजय।