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________________ स्तवनावली। सुगति सोजागी है। जक्तकी सुणी राव, चित्तमें किजे ठराव, आतम आनंद वीरविजय मांगत है ॥ आ ॥४॥ ॥ श्रीअजित जिन स्तवन ॥ ॥ राग भोपाल, ताल संगीत ॥ ध्या जिन अजित देव, नवी जन हितकारी ॥ आंकणी ॥ तुम प्रजु जित राग द्वेष । कर दिये सब कर्म खेद । थीर चित्त करुं तुमरी सेव । जिम थालं नवपारी ॥ ध्या०॥१॥ तुम बिन नही ज्ञान ज्ञेय, तुम बिन नहीं ध्यान ध्येय, तुम बिना कहें किनकी सेव; अंतर गत धारी ॥ ध्या० ॥२॥ अब चित्त धरी करी विचार, खट पट सब उर जार, कट पट अब मुजको तार, आनंद सुखकारी ॥ ध्याउं ॥ ३ ॥ प्रजु जई कीयो मुक्ति वास, सेवककुं एही आश, आतम आनंद कर विलास, वीर विजयकुं नारी ॥ ध्या ॥४॥
SR No.010687
Book TitleAtmanand Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherBabu Saremal Surana
Publication Year1917
Total Pages311
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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