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श्रीमवीरविजयोपाध्याय कृत--
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श्रीसंनव जिन स्तवन। राग महावीर चरणमें जाय, ए देशी ॥
प्रजु संचव जिन सुखदाई। चित्तमें लागी रहो ॥ प्र० ॥ चि ॥ आंकणी ॥ दुःख संजवमें पूर कीयो है। सुख संचव थयो आज ॥ चि० ॥ प्रजु ॥ १ ॥ एह संसार असार सार है। तुम शरणा महाराज ॥ चि ॥ प्रजु ॥ २ ॥ मोह सेन सब चुर लीयो है। शिवपुर केरो राज ॥ चि० ॥ प्रनु०॥ ३ ॥ दीन हिन कुखियो मुज देखी । सारो सेवकको काज ॥ चि० ॥ प्रजु०॥ ॥४॥ मोह मोह सब नाश करीने । राखो सेवककी लाज ॥ चि ॥ प्रजु०॥५॥आतम आनंद प्रनुजी दीजो । वीर विजयको आज ॥ चि० ॥ प्रजु० ॥६॥
श्रीअनिनंदन जिन स्तवन । __ ॥राग ठुमरीका भेद ॥
अनिनंदन स्वामी हमारा । प्रनु नव मुख नंजन हारा । ए बुनियां मुखकी धारा । प्रजु इनसे करो निस्तारा ॥ अ० ॥ १ ॥ हुँ कुमता