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१७२ श्रीमवीरविजयोपाध्याय कृतजी ॥ जे० ॥ ६ ॥ गम गममें गाम न आवे । जो आवे तो ढाणी। संघ मुकाम करे जंगलमें। देरा तंबू ताणीजी ॥जे० ॥७॥ दिनरात रस्तामें पहेरा । देता चोंकीवाला । माढी मुंबाने मसराला । हाथमें बंदूक नाला जी ॥ जे ॥ ७॥ अनुक्रमे कठिण पंथ ओलंघी । विघन रहित सब जावे। पोकरण फलोधी. जात्रा करके । जेसलमेरमें आवेजी ॥ जे ॥ए । ओगणिसें समसठ पोष शुदकी। दशमी मंगलवारे | जेसलमेरमें जिनवर नेट्या | आनंद मंगला च्यारेजी॥जे ॥१॥ तन मन धनसे जात्रा कीजे। नरजव लाहो लीजे। वारवार अवसर नहीं आवे । सदगुरुसे सुणिजे जी ॥ जे ॥ ११ ॥ करमरायने विवर दीयो जब । नाग्योदय नया बलिया । वीरविजय कहे आज हमारे । मनका मनोरथ फलियाजी ॥ जे ॥ १२ ॥
॥श्रीअंतरिद पार्श्वनाथ जिन स्तवन ॥
मति विसरो पास जिनेश्वरकुंमति विसरो। मति विसरो अंतरिक्ष पारशकुं ॥ मति ॥ आं