________________
श्रीमदवीरविजयोपाध्याय कृत--
रज शीकारोरे ब्रांति निवारोरे॥ शंग॥ चि० ॥१॥ वेरण कुमति हुँ जरमायोरे करम वश आयोरे नवे जटकायोरे ॥ शं० ॥ चि ॥ २ ॥ पुरव पुन्य उदे करी पायोरे मनुष्यगति आयोरे चित्त हरखायोरे॥ शं० ॥ चि० ॥३॥ अब चरणोंकी सेवा में पामीरे दील विसरामीरे शंखेश्वर स्वामीरे॥शंाचि०॥४॥ तुम प्रनु आतम आनंद दारे वीरने सहारे कर करुणारे ॥ शं० ॥ चि ॥ ५ ॥
॥श्रीतारंगाजी मंगन स्तवन ॥ ॥ विषयों के नेमे मत जाओ, ए देशी ॥
तारंग तीरथे सोहाय तारंग तीरथे सोहाय ॥ प्रनु मेरोरे तारंग तीरथे सोहाय ॥ आंकणी ॥ मुलनायक श्री अजित जिनेश्वर, नेट्यां नव फुःख जाय ॥ अनु॥१॥ नव नव जटकत शरणे हूं आयो, अब तो रखोजी मोरी लाज ॥ प्रजु॥२॥ तारंग तीरथे नवि जन तारण, बैठे ध्यान लगाय॥ प्रजु ॥३॥ हुँ अनाथ मुजको जो तारो, जगमें बहु जश थाय ॥ प्रक्षु ॥ वीरविजयनी विनती एही, आवागमन निवार ॥ प्रनु० ॥ ५ ॥