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________________ म्तवनावली। ॥ अथ परचुरण स्तवनानि ॥ श्रीनावनगर मंगण श्रीचंज प्रन जिन स्तवन । ॥ राग इंद्र सभा दादरो॥ चंवदन शुन्न चंद्र प्रजु ताहरा । देखी दिल शांत मन चकोर रीजे माहरा ॥ १ ॥ नयन युगल नये शांत रस ताहरा । प्रनु गुण कमल नमर मन माहरा ॥ ५ ॥ प्रतु तोही ज्ञान सोही जान सर ताहरा, उहां मनहंस खेले रातदीन माहरा ।।३।। प्रनु करुणा दृग् हमसे नई ताहरी । तव मद मोह किसी निंद खुली माहरी ॥ ४॥ अति उत्कंठसें में दर्श चाह ताहरा । करमके फंदेसें जो नाग्य खुले माहरा ॥ ५॥ नावपुरे वास नया खास प्रनु ताहरा । सिझ हुवा काज वीर विजय कहे माहरा ॥ ॥ श्रीशंखेश्वरपार्श्व जिन स्तवन ॥ ॥ राग दादरा ॥ चितहर मारा शंखेश्वर प्यारारे ॥ चि० ॥ आंकणी ॥ प्रन्नु मोरी विनती दिलमें धारोरे अ
SR No.010687
Book TitleAtmanand Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherBabu Saremal Surana
Publication Year1917
Total Pages311
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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