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श्रीदेवविजयजी कृत-- अथ पंचम दीपकपूजा।
॥दोहा॥ निश्चय धन जे निजतएं, तिरोनाव ले तेह । प्रमुख अव्य दीपक धरी,आविरजाव करेह ॥१॥ अनिनव दीपक ए प्रजु, पूजी मांगो हेव । अझान तिमिर जे अनादिनु, टालो देवाधिदेव ॥
ढाल पांचमी।
( झुमखडानी देशी) जाव दीपक प्रनु आगले, अव्य दीपक उत्साहे। जिनेसर पूजीए।प्रगट करी परमातमा, रूप जावो मन माहे ॥ जि ॥ १॥ धूम कषाय न जेहमां, न लिपे पतंगने तेज । जिण् । चरण चित्रामण नवि चले, सर्व तेजनुं तेजरे॥जि०॥२॥ अध न करे जे आधारने, समीर तणे नहीं गम्य । जि | चंचल नाव जे नवि लहे, नित्य रहे वली रम्य ॥ जि॥३॥ तैल प्रक्षेप जिहां नहीं, शुभ दशा नहि दाह । जि० । अपर दीपक ए अरचतां, प्रगटे प्रशम प्रवाह ॥ जिण ॥४॥ जेम जिनमति ने धनसिरि, दीप पूजनथी दोय । जि० ।