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अष्टप्रकारी पूजा |
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अमर गति सुख अनुभवी, शिवपुर पोहोती सोय || जि० ॥ ५ ॥
( काव्यम् )
बहुलमोहनमिस्त्र निवारकं स्वपरवस्तुविकासनमात्मनः । बिमलबोधसुदीपकमादधे भुवनपावन पारंगताग्रतः ॥ १ ॥ ॥ इति पंचम दीपकपूजा समाप्ता ॥
अथ षष्ट प्रतपूजा । || दोहा || सम कितने अजुवालवा, उत्तम एह उपाय । पूजाथी तमे प्रीठजो, मनवंठित सुख थाय ॥ | १ || अक्षत शुद्ध अखंमशुं, जे पूजे जिनचंद | लहे खंमित तेह नर, अक्षय सुख यानंद ॥ २ ॥
ढाल वही ।
( धर्म जिणंद दयालजी धर्मतणां दाता, ए देशी ) अक्षत पूजा जवि कीजेजी, अत फल दाता | शालि गोधूम पण लीजेजी ० । प्रभु सन्मुख स्वस्तिक कीजेजी ० | मुक्ताफल वीच में दीजेजी ० ॥ १ ॥ एवा उज्वल यक्षत