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१५४ श्रीमद्वीरविजयोपाध्याय कृत-- दाने केवल | पाये प्रजु धारी । कल्याणिक जग सुखकारी ॥ चा ॥२॥ दो विध चक्री पद सुख जोगी। ते प्रजु आनंद कारी । समेत शिखर जाइ ध्यान लगाई । लीनी शिव पटराणी । करमदय से जवपारी ॥ चा ॥३॥ तीरथयात्रा करो शुन नावें । समकित निरमलकारी । जनम जनम के पाप निवारी। आतमके हितकारी । सदा सुखके दातारी ॥ च० ॥ ४ ॥ शहेर दिल्लीसें यात्रा करनकुं। संघ सकल मिल आये।श्रीश्रीहस्तिनागपुर में । धवल मंगल वरताये । पूजासें आनंद पाये । चा० ॥ ५॥ संवत् जुवन बाण निधि इंदु । फाद्गुन शुदि सुखकारी। गुरुवार प्रतिपद जयकारी। 'वीर विजय हितकारी । प्रज्जु नेव्यां नवपारी ।। चा० ॥ ६ ॥
माझवगढममन स्तवन ।
॥ पानीहारीकी देशी ॥ मांमवगढमें विराजता माहारा बालाजी ॥ मा० ।। स्वामी सुपास जिणंदा ॥ वा० ॥ तिण कारण तीरथ वहुं ॥ माहा ॥ नूमंमल प्रचंग ॥ वा ॥ १ ॥ विषम पहाग कामी घणी ॥ मा ।।