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श्रीमद्वीर विजयोपाध्याय कृत-
मोहनगारी रे दयाल | कणी ॥ जीयारे चंद बदन प्रभु मुखकी शोना सारीरे ॥ जय० ॥ चं० ॥ २ ॥ जीयारे राम रस नरियां नेत्र युगलकी जोमी रे ॥ जय० ॥ स० ॥ ३ ॥ जीयारे प्रभुपद लीनो कामनीको संग बोमीरे ॥ जय० ॥ प्र० ॥ ४ ॥ जीयारे अब में प्रभुजी से अरज करूं कर जोगीरे ॥ जय० ॥ ० ॥ ५ ॥ जीयारे चंचल चितकुं कीण विध राखुं काली रे ॥ जय० ॥ चं० || ६ || जीयारे फिर फिर बांधे पाप करमकी क्यारीरे ॥ जय० ॥ फिर० ॥ ७ ॥ जीयारे नेक नजर करी नाथ निहारो धारीरे ॥ जय० ॥ ने० ॥ ८ ॥ जीयारे तुम चरणांकी सेवा यो मुज प्यारीरे ॥ जय० ॥ तु ॥ ए ॥ जियारे जिम मुज मनमुं अंतर घटमें आवेरे ॥ जय० ॥ जिम० ॥ १० ॥ जियारे आनंद मंगल वीरविजयकुं थावेरे
॥ जय० ॥ ० ॥ ११ ॥
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श्री सुविधिजिन स्तवन ।
|| राग ध्रुपद || आइ इंद्र नार कर कर शृंगार, ए देशी । श्री सुविधिनाथ, प्रभु मोद साथ में जयो