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स्तवनावली |
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रसना जरिया || ज० || ४ || अजित संजव अनिनंदन सुमति | पद्मप्रभुजी जाणो । सुपास चंद्रप्रजुने सुविधि । शीतल जिनने वखाणो ॥ ज० || ५ || श्री श्रेयांस विमलने अनंत जिन । धर्म जिनेश्वर कहिये । शांति कुंथु र जिनवरनी | नक्ति करी शिव लहिये || ० || ६ || मल्लिनाथने मुनिसुव्रत जिन । नमि पार्श्व गुण जरिया । वीसे टुंके वीस जिनेश्वर । शण करी शिव वरिया ॥ ज० ॥ ७ ॥ वीस प्रभु निरवाण थयाथी, वीसं कल्याणिक जाणो । पावन तीरथ तेहथी कहिये | शंका मन नहीं आणो ॥ ज० ॥ ८ ॥ तीरथ सेवा सद्गति । कहे सिद्धांत नहीं खोटं । समकीत शुद्ध थवानुं कारण । ए तीरथ बे मोटुं ॥ ज० ॥
|| जात्रा करवा शिव सुख वरवा । संघ सकल हवे मलियो | स्वपरिवारे चमते जावें । लश्करथी निक लियो || ज० ॥ १० ॥ शेठजी नथमल वाघमलजी । लश्कर शहेरना जाणो । गोलेवा जो गोते कहिये | श्रावक श्रेष्ठ वखाणो ॥ ज० ॥ ११ ॥ शेठजी नगीनचंद कपूरचंद | सुरत शहरना कहिये | बबुनाइने दलसुखनाई । फुलचंदनाश्ने लहिये ॥ ० ॥ १२ ॥ जगवानसिंहजी जक्ती