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स्तवनावली । मोद हाम || मोरी० ॥ ५ ॥ वीरविजयकी एही अरज है, हमको हे प्रनु एही काम ॥ मोरी॥६॥
॥ श्रीवीर जिन स्तवन ॥
॥ राग धन्यासरी ॥ वीरहसें नयोरे उदासी । वीर जिन वीरह सें जयोरे उदासी ॥ टेक ॥ उषम कालमें पुखियो गेमी । तुम जये शिवपुर वासीरे ॥वी०॥१॥ मनु दरिसण परतद न दी। ईणशुं नयोरेनीराशीरे ॥ वी० ॥२॥ करमराय सुनटें मुज घेर्यो । महारी कर सव हांसीरे ॥ वीर० ॥ ३॥ तुम विना एकाकी मुज देखी। मारी गले मोह फांसीरे ॥ वीर ॥ ४ ॥ प्रजु विना को न करे मुज करुणा । देखो दिलमें विमासीरे ॥ वीर ॥५॥ पीण तुज आगम ने तुज मुरति । एही शरण मुज थासीरे ॥ वीर ॥ ६ ॥ एही नरोंसो मुज मन मोटो। लांगी नवकी उदासीरे ॥ वीर ॥ ७॥ वीरविजय कहे वीर प्रजुकी । मुरती शरणज थासीरे। वीर ॥ ७॥