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स्तनावली।
तुम निज आतमको कनक करन टुक फरसो तो सही ॥५॥ अजर अमर प्रजु ईश निरंजन नं. जन कर्म कही, एतो सेवक मन वंडित सब पूरण अद्भुत कल्प सही ॥ ३ ॥ चंद्र अंक वेद दिव संवत् षष्ठी मैत्र लही, मन हर्ष हर्ष प्रजुके गुण गावत परमानंद लही ॥४॥
स्तवन सत्तरमुं।
॥ राग विहाग | दायक है प्रनु पास निरंजन अंजन तिमिर मिटारी । अनुभूति निज प्रगट जश् है परमानंद नराश् सखीरी॥ दायक ॥॥ सप्तनंगषमंजग अनंग रंगे गुण परजारी ॥ चार जंग अम पद सुज्ञाता ध्याता शिवसुख ताश्सखीरी।दा०॥२॥ चार निखेपा नय घन सातो ज्ञान क्रिया समुदारी। तिमिर एकांत मिथ्या मत टारी अंतज्योति लगाइ सखीरी ।। दाम् ॥३॥ तुम जाने विन नाथ निरंजन काल अनंत गमाशी । पर गुण राच रच्यो नट नाटक नयना मैल नराश सखीरी ॥ दा० ॥ ४ ॥ तुम अंजनने तिमिर नसायो उर्जन पिंथर मिटाशी ॥ निज स्वरूपके