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श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत--
द्विजवरको दीनो, गोशालक उधरायो॥ जमाली पन्नर जव अंते, महानंद पद गयो ॥ चरमण ॥ ४ ॥ मत्सरी गौतमको गणधारी, शासन नायक गयो। तेरे अवदात गिनुं जग केते, करुणासिंधु सुहायो ॥ चरम ॥ ५ ॥ हुं बालक शरणागत तेरो, मुजको क्युं विसरायो ॥ तेरे विरहसे हुं फुःख पामुं, कर मुज आतम रायो । चरम०॥६॥
स्तवन दशमुं।
॥ राग वसंत सिंध काफी ॥ वीर प्रजु मन जायोरे मेरे जव फुःख टारे॥ वीर ॥ आंचली ॥ देशना अमृत रस जरी नीकी, नवनव ताप मिटायो । शोल पहोर लग दे जिनवरजी, करुणासिंधु सुहायोरे ॥ मे ॥१॥ पचपन सुन फल पचपन इतरे, यही अध्ययन सुनायो । बत्रीस बिन पूजे प्रश्नोंका, उत्तर कथन करायोरे ॥ मे ॥ २ ॥ एक अध्ययनही नाम प्रधाने, कथन करत महारायो । महानंद पद जग गुरु पायो, जय जयकार करायोरे ॥ मे ॥ ३॥ कल्याणक निर्वाण महोच्छव, कार्तिक मांवास