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१२२ श्रीमद्वीरविजयोपाध्याय कृतशी ॥ ॥ देवकुमार कुमारिका वीरची, मुखथी थे थेश्कार करंद ॥ शी० ॥३॥ धप मप धुंधुं मादल बाजें, वेणु वीणा अति कणकंत ॥ शी० ॥ ४ ॥ ताल मृदंग ढक नेरीने फेरी, माधुरी धुनी सुनाद करंद ॥ शी० ॥ ५॥ कोमल करयुग तालिका लेती, चूमीनो खलकार करत ॥ शी० ॥ ६ ॥ प्रनु गुण गावती अतिमन रंगे, अपने जनमके लाव लहंत ॥ शी० ॥ ७॥ देखण इस विध नाटक रचना, वीरविजय मन चाहे करंद ॥ शी० ॥ ॥
श्रीश्रेयांस जिन स्तवन ।
॥ राग भैरवी ॥ श्रीश्रेयांसजिन अंतरजामी, दील विसरामी मेरोरे ॥ दी० ॥ आंकणी ॥ अधम उधारण दुःख निवारण, तारण तीन जग केरोरे । चंदवदन तुम दरिसण पामी, नांग्यो नवको फेरोरे ॥ श्री० ॥ १॥ चंद चकोर मोर घन चाहत, पदमणी चाहत प्यारो रे ॥ युं चाहत प्रनु मुज मन नमरो, चरण कमल दुग तेरोरे ॥ श्री ॥ ५ ॥ काल