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________________ AAAAA मझाया। १७. सनतकुमाररी । छिनमें रोग नये निज तनमें । देखो कर्मकथा वरी ॥ घ० ॥ ५ ॥ देखत देखत सवही विनसत। तन धन अथिर स्वनावरी । ऐसी नावना नावतही मन । ठोम लियो वैरा__ ग्यरी ॥ १० ॥३॥ सच्चा त्याग किये विन कबहु । पावत नहीं नव पाररी । पर परिणती त्यागो चेतन । वीर वचन चित्त धाररी ॥ घ० ॥ ४॥ {t अथ सज्झायो मुनिगुण सज्जाय । हां देखो मुनिवर ममता मारी । नये पंच महाव्रत धारी रे ॥ हां देखो ॥ आंकणी ॥ हिंसा जुड़ चोरीने वारी । ब्रह्मचर्य व्रत धारी रे । वाह्यान्यंतर ग्रंथी निवारी । लोग तरसना ठारी र ॥ हां दे० ॥१॥ तप शोपित तनु कृशधारी । जगजन आनंद कारी रे । पूजक निंदक दो शमकारी । नजते उग्र विहारी रे ॥ हां देश ॥ २॥ राग द्वेपकी परिणती वारी । परिसह फोजकुं मारी रे । गुणश्रेणि गुण स्थानक धारी। ध्यानारुढ जय वारी रे ॥ हां दे० ॥३॥ शोक
SR No.010687
Book TitleAtmanand Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherBabu Saremal Surana
Publication Year1917
Total Pages311
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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