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________________ २३० श्रीयशोविजयोपाध्याय कृतश्रीशीतलनाथ जिन स्तवन । (भोलुडारे हंसा, ए दशी) शीतल जिन तुज मुज विचि आंतरं, निश्चयथी नहि कोय । दसण नाण चरण गुण जीवने, सहुने पूरण होय ॥ अंतरयामीरे स्वामी सांनलो ॥ १ ॥ पण मुज मायारे नेदि गोलवे, बाह्य देखामीरे वेष । हियके जूठीरे मुख अति मीठमी, जेहवी धूरत वेष ॥ अं ॥२॥ एहनि स्वामीरे मुजथी वेगली, कीजे दीनदयाल । वाचक जश कहे जिम तुम्हस्युं मिली, लहियें सुख सुविशाल ॥ अं ॥३॥ श्रीश्रेयांस जिन स्तवन । (मुखने मरकलडे, ए देशी) श्रेयांस जिणेसर दाताजी, साहिब सांजलो। तुम्हे जगमां अति विख्याताजी, साहिब सांजलो। माग्युं देतां ते किशुं विमासोजी, साहिब सांजलो । मुज मनमां एह तमासोजी, साहिब सांजलो॥१॥तुम्ह देतां सवि देवार्थेजी, साहिब सांनलो।तो अरज कर्ये श्युं थायेजी, साहिब सांजलो। यश पूरण केम लहिजेजी, साहिब सांजलो ।
SR No.010687
Book TitleAtmanand Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherBabu Saremal Surana
Publication Year1917
Total Pages311
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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