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स्तवनावली। ___ पावापुरी में जिनजी बिराजे, नाथ निरंजन सुख करीयारे ॥ च ॥ १॥ चरम चौमासा करी जिनवरने, गौतम केवलपद वरीयारे॥ च ॥२॥ आनंद मंगल प्रजुजीके नामे, आतम अनुभव जव तरीयारे ॥ च ॥ ३॥
स्तवन बटुं।
॥ राग अंग्रेजी वाजेकी चाल || जिनंद चंद देखके आनंद नयो हुँ ।। टेक॥
तुंही कलंक पंकको निपंक कार तुं, बंध कर्म धंधको विमार मार तुं । जि० ॥ १ ॥ दास को निहार तार वीर नाथ तुं, रंग जंग मोहको विरंग जार तुं ॥ जिण ॥ ५ ॥ निरख तात रैन रैन नाथ साथ तुं, तेरेही दर्श परसको आनंद मानुं हुं ॥ जि० ॥ ३ ॥ सूर नूर रंगको अनंग कार तुं, आतम आनंद रंग राज आज हुँ जि ॥४॥
स्तवन सातमुं।
॥ राग बिहाग ॥ युं सिमरोरे सुझानी, जिनंद पद ॥ टेक ॥