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श्रीयशोविजयोपाध्याय कृत
बला शासनसुरीरे लो, महायक्ष करे सेवरे सु० । कवि जश विजय कहे सदारे लो, ध्यानं ए जिनदेवरे सु० ॥ श्र० ५ ॥
श्री संजवनाथ जिन स्तवन ।
( महाविदेह क्षेत्र सोहामं, ए देशी )
माता सेना जेहनी, तात जितारी उदार लालरे | हेम वरण हय लंबनो, सावत्थी शिणगार लालरे | संभव नवजय जंजणो ॥ १ ॥ सहस पुरुषशुं व्रत लिये, च्यारसें धनुष तनु मान लालरे । साठ लाख पूरव धरें, आउखं सुगुण निधान लालरे ॥ सं० ॥ २ ॥ दोइ लाख मुनिवर जला प्रजुजीनो परिवार लालरे । त्रण लाख वर संयती, ऊपर बत्रीश हजार लालरे ॥ सं० ॥ ३ ॥ समेतशिखर शिव पद लघु, तिहां करे महोच्छव देव लालरे । दुरितारी शासनसुरी, त्रिमुख यद करे सेव लालरे || सं० ॥ ४ ॥ तुं माता तुं मुज पिता, तुं बंधव त्रण काल लालरे । श्रीनय विजय विबुध तो, शिष्य कहे दुख टाल लालरे || सं० ॥ ५ ॥