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वृद्ध वनिताओ तेमनी भव्य वाणीनुं अमृतपान करी । नवु जीवन पामेछे-नवं चैतन्य स्फुरावेछ । पंजाबना ए धर्मवीर योहानुं शौर्य-वीर्य पंजाबनी जैन प्रजानी नसे नसे व्याप्त थह राछे। गुजरातीओ पण कंइतेथी वंचित नथी। दयानंद सरस्वती जेवा सबल शत्रुओनी सामे जेमनी सुयुक्ति पूर्ण वाणी अमोघ सुदर्शन स्वरूप गणाती हती, स्थानकवासीओना पुष्पास्त्र साम जेमनुं वज्रास्त्र निरंतर झझुमतुं हतुं, जेमनी तेजोमय मूर्ति निरवपणे यथार्थ मनुष्यतानुं ज्वलंत चित्र प्रकटावती हती, ते युग प्रभावक मुनिवरनी कीर्तिगाथा सहस्रकंठे गाइए, तो पण अधुरीने अधुरीज भासेछे । व्याख्यान--वाचस्पति पण जेमनी सवल वक्तृत्वशैली पासे लजित थाय, एक "मार्टीपर" पण जेभनी धर्मार्थप्राणाहुति पासे निस्तेज थाय, जेमनी मुखमुद्रा सागरनी गंभीरतानुं सूचन करती हती, जेमनां शांत, उज्ज्वल अने वीरत्वभर्या नेत्रोमांथी विश्व प्रेम, अखड मैत्री अने जगदुद्धारना दीप्तिमय किरणो वर्षतां हतां, ते श्री आत्मारामजी अमारा आत्मरूपी आरामने आजे पण अमूल्य रमणीयता अी रह्याछे।अमारी पासे एवी तेकह संपत्ति छे, एवी ते शी सामग्री छे, के अमे ते प्रातःस्मरणीय मुनीश्वरना चरण युग
लमां ढाली दइए ? नथी धन संपत्ति, नथी बुद्धि-2) Ge