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स्तवनावली |
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करी, व क्युं उलटी रीत धरी । तम हित जग लाज टरी, निज जुवन सी धावोरे । आवो० ॥ ३ ॥
स्तवन चोथुं ।
॥ राग बिहाग ॥
वारक है शिवादेवी के नंदन करम कठिन डुख दाइ, मार धारा दूर करी हे स्याम रूप दरसाइ सखीरी ॥ वा० ॥ १ ॥ मदन कदन शिव सदन के दाता, हरण करन दुखदाइ ॥ करम नरम जग तिमिर हरनको अजर अमर पद पाइ सखीरी ॥ वा० ॥ २ ॥ जडुपति वदन करत अनंदन, स्मत्र चार बितराइरी ॥ अमम
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मम जिन रूप सरीसो, जिनवर पद उजपाइ सखीरी ॥ वा० ॥ ३ ॥ राजिमती निज वनीता तारी, नवनव प्रीति निजाइरी ॥ हलधर रथकर मृग तुम नामे, ब्रह्मलोक सुर थाइ सखीरी ॥ वा० ॥ ४ ॥ गजसुकुमाल लाल तुम तार्यो, नववन सगरे जराइरी ॥ ए उपगार गिनु जग केता, करुणा सिंधु सहाइ सखीरी ॥ वा० ॥ ५ ॥ पिए निज कुटुंब उद्धार नाथजी, तारक विरूद धराइरी ॥ ए गुण वर नरनमें राजे, इनमें कां