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४८ श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत
॥स्तवन बीजुं ॥ क्यां करूं माता मेरी, पंमित के जाकेरी, ए देशी॥
नव नव केरी प्रीत सजन तुम तोमी न जावोरे ॥ नव० ॥ आंकणी ॥ मुगती रमणीस्युं लागी लगन, मनमें अति वैराग धरना । बोम चले निज साथ सजन, मुख फेर देखावोरे ॥ नव० ॥१॥ तुम बोठी अब जात कहुं, में नही बोमत घर न रहुं । जोगन बनी तुम संग चलुं, नीज ज्योती जगावोरे ॥ नव ॥२॥ आतम वेर न कुमती ब्लुं, राग द्वेष मदमोह दबुं । मुगती नगर तम संग चटुं, नीज जोर जनावोरे ॥ नव० ॥३॥
॥ स्तवन तीजुं ॥ आवो नेम सुख चेन करो, उख काही देखावोरे ॥ आंकणी ॥ विरह तुमारो अतीही कठन, सही न शकुं पल एक बीन। जगत लाग्यो सब हांसी करन, मत बगैमीने जावोरे॥आवो॥१॥ करुणासिंधु नाम धरन, सुण अनाथके नाथ जीन। रुदन करूं तुम चरन परन, टुंक दया दील लावोरे ॥ आवो ॥ ५ ॥ अमनव सुंदर प्रीत