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१७६ श्रीमद्वीरविजयोपाध्याय कृतनिधि रस निधीन्दु वर्षे, पोस मासे सित पदे । चतुर्दशी दिन लेटे, एही अजीराम है जी॥ मे ॥ ७ ॥
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श्रीसीनोरममन सुमति जिन स्तवन ।
सुखकारी, सुखकारी, सुखकारी, कृपानाथ हो जाजं वारी, सुमतिजिन सुमति सेवकने दीजियेजी ॥ ए आंकणी ॥ दरिसण देव दीजे, कुमतिकुं पूर कीजे ॥ एही मागुंडं हे दातारी ॥ कृपा ॥१॥ कुमतिने कामण कीया, मुजको नरमाई दीया। श्नसें बगेमा दो हे सरदारी कृपा ॥२॥ पंचम अवतार लीया, दुनियांकुं तार दीया ॥आशा पुरो कहूं पोकारी ॥ कृपा ॥३॥ निरादर नाही कीजे, बिरूद संजाल लीजे। तरणतारण बो हे अधिकारी || कृपाण ॥ ४॥ सीनोर मंमन नामी, सुमति जिनेश्वर स्वामी ॥ बेनी उतारो प्रजुजी हमारी ॥ कृपा ॥५॥ निधि रस निधि चंदा, संवत् है सुखकंदा । वीर विजयकुं आनंदकारी ॥ कृपा ॥६॥