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स्तवनावली |
स्तवन हावी शभुं ।
|| राग धुपद || आई इंद्र नार || देशी ॥ सब करम जार, जिन सरन धार, तुम नाम सार, नवी सरत कार, अनुभव आधार, समयतरस जीनो ॥ स० ॥ १ ॥ नवोदधि अपार,
करतार तार, जग सत्यवाह, सब जग आधार, तूही पास नाथ अजरामर कीनो ॥ स० ॥ २ ॥ सब मेट सोग, सब विषय जोग, कर आज योग, मिटे मनका रोग, तुम नाम लेत मोह नट जय कीनो ॥ स० ॥ ३ ॥ मम सर्यो काम, तुम चरन पाम, तुम धर्यो ध्यान गयो पाप नाम, तम आनंद दरसन कर लीनो ॥ स० ॥ ४ ॥
स्तवन
७?
त्रीभुं ।
॥ राग प्रभाति ॥
थोमीसी जिंदगी सुपनसी माया, इनमें क्यों मुरकाया रे || थो० ॥ टेक ॥
तन धन जोबन निकमें बिनसे, जिस पर मन रिकाया रे || थो० ॥ १ ॥ गरव जार जगमें न समाते, बादर जिम विरलायाहे रे ॥ थो० ॥