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श्रीयशोविजयोपाध्याय कृत-
पीरसे रसाल हो ॥ प० ॥ २ ॥ गज ग्रासन गलित
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सी थिंकरी, जीवे की मीना वंश हो । वाचक जश कहे इम चित्त धरी, दीजे निज सुख एक प्रश हो ॥ प० ॥ ३ ॥
'श्री सुपास जिन स्तवन । (ए गुरु वाल्होरे, ए देशी ) श्री सुपास जिनराजनोरे, मुख दीठे सुख होईरे । मानु सकल पद में लह्यांरे, जोतो नेह नजरि नरि जोई ॥ ए प्रभु प्यारोरे, माहारा चित्तनो ठारणहार मोहन गारोरे ॥ १ ॥ सिंचे विश्व सुधारसेंरे, चन्द रह्यो पण डूररे । तिम प्रभु करुणा दृष्टिथी रे, लहिये सुख महमूर ॥ ए० ॥ २ ॥ वाचक जश कहे तिम करोरे, रहिये जेम हजूररे । पीजे वाणी मीठमीरे, जेहवो सरस खजूर ॥३॥
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श्री चन्द्रप्रत्र जिन स्तवन । ( भोला शंभु, ए दशी ) मोरा स्वामी चन्द्रप्रन जिनराय, विनती अवधारीयें जीरेजी । मोरा स्वामी तुम्हे बो दीनदयाल, जवजलथी मुज तारीयें जी० ॥ १ ॥
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