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श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत
वधु वसीकरणको नीकी, तीनो रत्न धरी । आतम आनंद रसकी दाता, वीर प्रभु दान करी वीर० ॥ ४ ॥
स्तवन बारमुं । ॥ राग श्री ॥
वीर जिन दर्शन नयनानंद, वीर जिन० ॥ चंद्र वदन मुख तिमिर हरे जग, करुणा रस दृग जरै मकरंद | नीलांबुज देखी मन मधुकर, गूंजे तूंही तूंही नाद करंद ॥ वीर जिन० ॥ १ ॥ कनक वरण तनु नवि मन मोहे, सोहे जीते सुरगन वृंद | मुखथी मृत रस कस पीके, शिखीबत जवि जन नाच करंद | वीर जिन० ॥ २ ॥ तपत मिटी तुम बचनामृतसे, नासे जनम मरण दुःख फंद । अक परे तुम दरस करीने, प्रतक्ष मानुं हुं जिन चंद ॥ वीर जिन० ॥ ३ ॥ अरज करतहुं सुन जयनंजन, रंजन निज गुन कर सुखकंद | त्रिशला नंदन जगत जयंकर, कृपा करो मुज आतम चंद ॥ वीर जिन० ॥४॥