________________
२०६
~
~
~
श्रीयशोविजयोपाध्याय कृत-- श्रीसंनवनाथ जिन स्तवन ।
( मन मधुकर मोही रह्यो, ए देशी) संचव जिनवर विनती, अवधारो गुणज्ञाता रे। खामी नहिं मुज खिजमते। कहिंय होश्यो फल दातारे । सं०॥१॥ कर जोमी उनो रहुं,राति दिवस तुम ध्यानेरे । जो मनमा आणो नहि, तो शुं कहिये गनेरे ॥ सं॥२॥ खोट खजाने को नहि, दीजे वंबित दानोरे । करुणानजरे प्रजुतणी, वाधे सेवक वानोरे । सं० ॥३॥ काल लब्धि नही मति गणो, नाव लब्धि तुज हाथेरे । लमयमतुं पण गज बच्चु, गाजे गजवर साथेरे॥सं॥ ॥४॥ देश्यो तो तुमही नला,बीजा तो नवि याचुरे । वाचक जश कहे सांश्शु, फलशे ए मन साचुरे ।। सं० ॥२॥ श्रीअनिनन्दन जिन स्तवन ।
(सुणयो प्रभु, ए देशी ) दीठी हो प्रजु दिठी जगगुरु तुज, मूरती हो प्रजु मूरत मोहन वेलमीजी।मीठी हो प्रनुमीठी ताहरी वाणि, लागे हो प्रजु लागे जेसी शेलमीजी ॥१॥जाणुं होप्रनु जाणुंजनम कयथ्थ,जो हो प्रजु १ कृतार्थ ।