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________________ ४२ श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत वाजे, शिरपर बत्र फिरावेजी ॥ जि० ॥ २ ॥ हिंसक जन हिंसा तजी पूजे, चरणे सीस नमावे, तूं ब्रह्मा तूं हरि शिवंकर, वर देव नही जावेजी || जि० ॥ ३ ॥ करुणारस जरे नयन कचोरे, अमृतरस वरसावे, वदन चंद चकोर ज्यु निरखी, तन मन अति जलसावेजी ॥ जि० ॥ ४ ॥ तम राजा त्रिभुवन ताजा चिदानंद मन जावे, मल्लि जिनेसर मनहर स्वामी, तेरा दरस सुहावेजी ॥ जि॥२॥ ॥ स्तवन चोयुं ॥ ॥ राग परज ॥ ॥ निशदिन जोउं थारी वातडी घर आवो मारा ढोला, ए देशी ॥ मब्लि जिनेश्वर साहिब तुं तो अंतरजामी ॥ चली ॥ करम सुनट रण अंगणे एक निकमें दामी, षटू मित्त प्रतिबोधक कीने जगत निकामी ॥ मलि० ॥ १ ॥ पर उपकारी तुं प्रभु करुणा कर स्वामी । तेरो मुख दीठे मीठे मेरे मनकी खामी ॥ मलि ॥ २ ॥ करम रोगके हरनकुं प्रभु तुं जगनामी, वैद्य धनंतरी मो मीले त्रिभुवन विरामी || मल्लि० ॥ ३ ॥ वरण प्रियंगु तनु धरे जवीजन सुख कामी, अष्टादस मल
SR No.010687
Book TitleAtmanand Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherBabu Saremal Surana
Publication Year1917
Total Pages311
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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