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स्तवनावली |
केवल दरस ज्ञान युत स्वामी, नामी अमदस दोस जरंद | लोकालोक प्रकाशित जिनजी, वानी मृतकरी बरसंद ॥ ० ॥ ३ ॥ पीके न विजन मर जये है, फिर नहीं जवसागर ही फिरंद ॥ नित्यानंद प्रकाश जयो है, करम नरमको जार्यो फंद ॥ ० ॥ ४ ॥ अवर देव वामारस राचे, नासे निज गुन सहजानद । तूं निर्मद विजु ईश शिवंकर, टारे जनम मरन दुख धंद ॥ ० ॥ ५ ॥ तेरह | चरण सरण हुं त्र्यायो, कर करूणा अर्हन् जगद | अंतर्गत मुकसह तूं जाने, सरणागतकी लाज रखंद ॥ ० ॥ ६ ॥ गुरजर देश में आतमानंदी,
यी नजवर उग्यो चंद ॥ वियत शिखि निधि इंदु शुभ वरसे, मास वैशाख पूनिम चंद ॥० ॥ ७॥
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॥ स्तवन तीजुं ॥
जिन राजा ताजा, मल्लि विराजे जोयणी गाममे ॥ टेक ॥
देश देशके जात्रु यावे, पूजा सरस रचावे, मल्लि जिनेसर नाम सिमरके, मनवंठित फल प|वेजी ॥ जि० ॥ १ ॥ चतुर वरणके नर नारी मिल मंगल गीत करावे, जय जयकार पंचध्वनि
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