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__ श्रीमद्विजयानंदसूरि कृतजोझा नामसें मार करमका जर दहीये ॥ ने ॥ २॥ वताचल मंझन मुख खंमन मंमन धर्म धुरा कहीये ।। तुम दरशन करके पापके कोट बिनकमें सब ढहीये ॥ने॥३॥ आतम रंग रंगीला जिनवर तुमरी चरन सरन लहीये ॥ तो अलख निरंजन ज्योतिमें ज्योति मिलीने संग रहीये ॥ ने ॥४॥
स्तवन नवमुं।
॥ राग ठुमरी ॥ मन मगन नेमि जिन दरसनमें ॥ टेक ॥ आवो सखी मिल गिरवर चलिये, नेमि चरन युग फरसनमें ॥ मनः ॥ १ ॥ रेवताचल नये तीन कल्यानक, मुगति दैत सेवक जनने॥मन॥२॥ आतम रूप गहु मन मोहे न बोहुँ रूप रस तन धनने ॥ मन ॥३॥ ॥ इति श्री नेम नाथ जिन स्तवनानि संपूर्णानि ॥ ॥श्री पार्श्वनाथ जिन स्तवन ॥
स्तवन पहेलु।
॥राग बढंस ॥ मूरति पास जिनंदकी सोहनी । मोहनी जगत उधारण हारी। मू । आंकणी। नील कमल
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