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श्रीयशोविजयोपाध्याय कृत
महलमें खेले दोश्, प्रणमें जश उदलसित तन हो ॥ दि० ॥ १५ ॥ श्रीपार्श्वनाथ जिन स्तवन ।
(ढाल फागनी ) चन कषाय पाताल कलश जिहां, तिसना पवन प्रचंम । बहु विकल्प कल्लोल चढतुहे, आरति फेन उदंग ॥ नव सायर नीषण तारीयें हो, अहो मेरे ललना पासजी । त्रिजुवन नाथ दिलमें ए विनती धारीयें हो ॥ १ ॥ जरत उदाम काम वरवानल, परत शीलगिरि शृंग । फिरत व्यसन बहु मघर तिमिंगल, करत हे निगम उमंग ॥ न ॥२॥ नमरीयाके बीचिं जयंकर, उलटी गुलटी वाच । करत प्रमाद पिशाचन सहित जिहां, अविरति व्यंतरी नाच ॥ न० ॥ ३ ॥ गरजत अरति फुरति रति बिजुरी, होत बहुत तोफान । लागत चोर कुगुरुमलवारी, धरम जिहाज निदान ॥ न० ॥ ४ ॥ जुरे पाटियें जिलं अति जोरि, सहस अढार शीलंग । धर्म जिहाज तिचं सज करि चलवो, जश कहे शिवपुरी चंग ॥ ज० ॥५॥