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चोविशी। श्रीनेमिनाथ जिन स्तवन ।
( राजा जो मिले, ए देशी) क्या कियो तुम्हे कहो मेरे सांई, फेरी चलें रथ तारण आई। दिल जानि अरे मेरा नाह, न त्यजिये नेह कलु अजानि ॥ दि० ॥१॥ अटपटाश् चले धरि कुब रोष, पसुअनके शिर दे करि दोष ।। दि० ॥५॥ रंग बिच लयो याथि नंग, सो तो साचो जानो कुरंग ॥ दि० ॥ ॥३॥ प्रीति तनकर्मि तोरत आज, किचं नावे मनमें तुम्ह लाज || दि०॥४॥ तुम्ह बहु नायक जानो न पीर, विरह लागि जिलं वैरीको तीर ॥ दि० ॥ ५॥ हार गर शिंगार अंगार, अशन वसन न सुहाई लगार ॥ दि०॥६॥ तुज विन लागे शूनि सेज, नही तनु तेज न हारद हेज ॥ दि० ॥७॥ आओने मंदिर विलसोनोग, बूढापनमें लीजे योग ।। दि०॥७॥ोरुगी में नहि तेरो संग, गलि चर्चा जिजं गया अंग॥ दिए॥ श्म विलवति गइ गढ गिरनार, देखे प्रीतम राजुल नार ॥ दि० ॥१॥ कंते दीनुं केवलज्ञान, कीधी प्यारी आप समान ॥ दि॥११॥ मुगति