________________ ये दश आकाशसम्बन्धी अस्वाध्याय हैं। (11-13) अस्थि, मांस और रक्त-पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च के अस्थि, मांस और रक्त यदि साठ हाथ के अन्दर हों तो संभवकाल से तीन प्रहर तक स्वाध्याय करना मना है। यदि साठ हाथ के अन्दर बिल्ली वगैरह चूहे आदि को मार डालें तो एक दिन-रात अस्वाध्याय रहता है। इसी प्रकार मनुष्यसम्बन्धी अस्थि, मांस और रक्त का अस्वाध्याय भी समझना चाहिए। अन्तर केवल इतना ही है कि इन का अस्वाध्याय सौ हाथ तक तथा एक दिन-रात का होता है। स्त्रियों के मासिक धर्म का अस्वाध्याय तीन दिन का एवं बालक और बालिकाओं के जन्म का क्रमशः सात और आठ दिन का माना गया है। (14) अशुचि-टट्टी और पेशाब यदि स्वाध्यायस्थान के समीप हों और वे दृष्टिगोचर होते हों अथवा उन की दुर्गन्ध आती हो तो वहां स्वाध्याय नहीं करना चाहिए। ' (15) श्मशान-श्मशान के चारों तरफ़ सौ-सौ हाथ तक स्वाध्याय न करना चाहिए। (16) चन्द्रग्रहण-चन्द्र-ग्रहण होने पर जघन्य आठ और उत्कृष्ठ बारह प्रहर तक स्वाध्याय नहीं करना चाहिए। यदि उगता हुआ चन्द्र ग्रसित हुआ हो तो चार प्रहर उस रात के एवं चार प्रहर आगामी दिवस के-इस प्रकार आठ प्रहर तक स्वाध्याय नहीं करना चाहिए। ___यदि चन्द्रमा प्रभात के समय ग्रहण-सहित अस्त हुआ हो तो चार प्रहर दिन के, चार प्रहर रात्रि के एवं चार प्रहर दूसरे दिन के-इस प्रकार बारह प्रहर तक अस्वाध्याय रखना चाहिए। पूर्ण ग्रहण होने पर भी बारह प्रहर स्वाध्याय न करना चाहिए। यदि ग्रहण अल्प-अपूर्ण हो तो आठ प्रहर तक अस्वाध्यायकाल रहता है। (17) सूर्यग्रहण-सूर्यग्रहण होने पर जघन्य बारह और उत्कृष्ट सोलह प्रहर तक अस्वाध्याय रखना चाहिए। अपूर्ण ग्रहण होने पर बारह और पूर्ण तथा पूर्ण के लगभग होने पर सोलह प्रहर का अस्वाध्याय होता है। सूर्य अस्त होते समय ग्रसित हो तो चार प्रहर रात के और आठ आगामी अहोरात्रि केइस प्रकार सोलह प्रहर तक अस्वाध्याय रखना चाहिए। यदि उगता हुआ सूर्य ग्रसित हो तो उस दिन-रात के आठ एवं आगामी दिन रात के आठ-इस प्रकार सोलह प्रहर तक स्वाध्याय नहीं करना चाहिए। (18) पतन-राजा की मृत्यु होने पर जब तक दूसरा राजा सिंहासनारूढ़ न हो, तब तक स्वाध्याय करना निषिद्ध है। नए राजा के सिंहासनारूढ़ हो जाने के बाद भी एक दिन रात तक स्वाध्याय नहीं करना चाहिए। 30 ] श्री विपाक सूत्रम् [स्वाध्याय