Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
२०
उत्तराध्ययन सूत्र - बाईसवाँ अध्ययन 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
भावार्थ - जीवन के अन्त को प्राप्त मांस के लिए खाये जाने वाले अर्थात् मांसभोजी बारातियों के लिए मारे जाने वाले प्राणियों को देख कर अतिशय प्रज्ञावान् वह अरिष्टनेमि कुमार सारथी (महावत) से इस प्रकार पूछने लगे।
विवेचन - यद्यपि 'सारथी' शब्द का अर्थ रथवान् - रथ को चलाने वाला होता है तथापि यहाँ सारथी शब्द का अर्थ महावत (हाथी को चलाने वाला) करना ही प्रकरण-संगत है क्योंकि भगवान् अरिष्टनेमि कुमार हाथी पर आरूढ़ हुए थे। इस बात का उल्लेख दसवीं गाथा में किया गया है। अथवा ऐसा भी संभव है कि कुछ दूर जाने पर भगवान् हाथी से उतर कर रथ में बैठ गये हों। उस दृष्टि से सारथी शब्द का अर्थ 'रथवान्' ठीक है। . . .
टीकाकार ने तो सारथी शब्द के दो अर्थ किये हैं - १. रथ को चलाने वाला रथवान्। २. हाथी को चलाने वाला 'हस्तिपक' अर्थात् महावत को सारथी कहा हैं।
कस्स अट्ठा इमे पाणा, एए सव्वे सुहेसिणो। वाडेहिं पंजरेहिं च, सण्णिरुद्धा य अच्छहिं॥१६॥
कठिन शब्दार्थ - कस्स अट्ठा - किसलिये, सुहेसिणो - सुख के अभिलाषी, सण्णिरुद्धा - रोके हुए, अच्छहिं - रखे हैं।
भावार्थ - ये सब सुख को चाहने वाले प्राणी किसलिए ये बाड़ों में और पिंजरों में रोके
विवेचन - शंका - तीर्थंकर जन्म से ही तीन ज्ञान साथ में ले कर आते हैं अतः अरिष्टनेमि अवधिज्ञान से बाडों और पिंजरों में पशु पक्षियों को बंद करने का कारण तो जानते ही थे फिर भी उन्होंने सारथी से इसका कारण क्यों पूछा? .
समाधान - भगवान् अरिष्टनेमि स्वयं जानते थे किंतु जीवदया का महत्त्व उपस्थित लोगों को समझाने के लिए ही उन्होंने सारथी से इसका कारण पूछा था।
नेमिनाथ की बारात में सैनिक आदि मांसभक्षी मनुष्यों की संख्या अधिक थी। अतः मांसभक्षी बारातियों को मांस से तृप्त करने के लिए चौपाये पशुओं को बाडों में और उड़ने वाले पक्षियों को पिंजरों में बंद कर के रखा था, जो भय से संत्रस्त थे।
अह सारही तओ भणइ, एए भद्दा उ पाणिणो। तुझं विवाहकजमि, भोयावेउं बहुं जणं॥१७॥
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org