Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 346
________________ लेश्या - विषयानुक्रम - ७. लक्षण द्वार .... - ३२१ 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 मायावी, अहीकता-निर्लज, विषय-कषाय में गृद्धि भाव रखने वाला, प्रद्वेष करने वाला, शठधूर्त ठग, प्रमादी, रसलोलुपी, सातगवेषक - सुख की गवेषणा करने वाला, आरम्भ से निवृत्त न होने वाला और क्षुद्र (तुच्छ). तथा साहसिक (बिना विचारे काम करने वाला), इन उपरोक्त परिणामों से युक्त मनुष्य नील लेश्या के परिणाम वाला होता है। वंके वंकसमायरे, णियडिल्ले अणुज्जुए। पलिउंचग ओवहिए, मिच्छदिट्ठी अणारिए॥२५॥ उप्फालग दुट्ठवाई य, तेणे यावि य मच्छरी। एयजोगसमाउत्तो, काऊलेसं तु परिणमे ॥२६॥ कठिन शब्दार्थ - वंके - वक्र, वंकसमायारे - आचार से वक्र, णियडिल्ले - निकृतिमान्-कपटी (कुटिल); अणुज्जुए - अन् ऋजुक-सरल नहीं, पलिउंचग - प्रतिकुञ्चक, ओवहिए - औपधिक, मिच्छदिट्ठी - मिथ्यादृष्टि, अणारिए - अनार्य, उप्फालग दुट्ठवाई - उत्प्रासक दुष्टवादी, तेणे - स्तेन-चोर, मच्छरी - मत्सरी। - भावार्थ - वक्र कुटिल-वचन बोलने वाला, वक्र आचरण करने वाला मायावी(मन की अपेक्षा वक्र), सरलता से रहित, प्रतिकुञ्चक-अपने दोषों को छिपाने वाला, औपधिक-छलपूर्वक बर्ताव करने वाला, मिथ्यादृष्टि, अनार्य, उत्प्रासक-दुष्टवादी - मर्म-भेदी वचन बोलने वाला, चोर और मत्सरी (दूसरों की उन्नति को सहन न करने वाला) उपरोक्त परिणामों से युक्त प्राणी कापोत-लेश्या के परिणाम वाला होता है। णीयावित्ती अचवले, अमाई अकुऊहले। विणीयविणए दंते, जोगवं उवहाणवं॥२७॥ पियधम्मे दढधम्मे, अवज-भीरू हिएसए। एयजोग-समाउत्तो, तेऊलेसं तु परिणमे॥२८॥ कठिन शब्दार्थ - णीयावित्ती - नीचैर्वृत्ति-नम्रवृत्ति, अचवले - अचपल, अमाई - अमायी, अकुऊहले - अकुतूहल, विणीयविणए - विनीत विनय, दंते - दान्त, जोगवं - योगवान्, उवहाणवं - उपधानवान्, पियधम्मे - प्रियधर्मा, दढधम्मे - दृढधर्मा, अवज्जभीरुअवद्यभीरु - पाप से डरने वाला, हिएसए - हितैषक। . भावार्थ - नम्र वृत्ति वाला (अहंकार रहित), चपलता-रहित, माया-रहित, कुतूहल आदि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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