Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 398
________________ जीवाजीव विभक्ति - वनस्पतिकाय का स्वरूप ३७३ 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 में उत्पन्न होने वाले कमल आदि), औषधि (धान्य आदि) और हरितकाय (हरे शाक आदि) जानने चाहिए। इस प्रकार प्रत्येक वनस्पति के भेद कहे गये हैं। विवेचन - क्षुधा वेदनीय के उदय से भूख लगती है। इसलिए भूख भी एक प्रकार का रोग है। रोग की उपशान्ति के लिये दवा (औषधि) करनी पड़ती है, इसी प्रकार भूख रूपी रोग के लिए अनाज औषधि है। इसीलिए शास्त्रकार ने गेहूँ, जौ, मक्की, बाजरी आदि २४ प्रकार के अनाज (धान्य) को औषधि कहा है। साहारणसरीराओ, णेगहा ते पकित्तिया। आलुए मूलए चेव, सिंगबेरे तहेव य॥७॥ हरिली सिरिली सिस्सरिली, जावई केयकंदली। पलंडु-लसण कंदे य, कंदली य कुहुव्वए॥८॥ लोहिणी हूयथी हूय, कुहगा य तहेव य। कण्हे य वजकंदे य, कंदे सूरणए तहा॥६॥ अस्सकण्णी य बोधव्वा, सीहकण्णी तहेव य। मुसुंढी य हलिद्दा य, णेगहा एवमायओ॥१०॥ कठिन शब्दार्थ - साहारणसरीराओ - साधारण शरीर वाले, आलुए - आलू, मूलएमूला, सिंगबेरे - श्रृंगबेर, हरिली - हरिली, सिस्सरिली - सिसरिली, जावई - जावंत्री कंद, केयकंदली - केत कन्दली, पलंडु - प्याज, लसणकंदे - लहसुन कन्द, कंदली - कन्दली, कुहुव्वए - कुहुव्रत, लोहिणी - लोहिणी, हूयथी - हुताशी, हूय - हुत, कुहगा - कुहक, कण्हे. - कृष्णकंद, वज्जकंदे - वज्रकन्द, सूरणए कंदे - सूरण कन्द, अस्सकण्णी - अश्वकर्णी, सीहकण्णी - सिंहकर्णी, मुसुंढी - मुसुण्ढी, हलिद्दा - हल्दी, एवमायओ - इत्यादि। भावार्थ - जो वनस्पति जीव साधारण शरीर वाले हैं, वे अनेक प्रकार के कहे गये हैं। यथा - आलू, मूला, श्रृंगबेर (अदरख), हरिली, सिरिली, सिसरिली, जावंत्रीकन्द, केतकन्दली, प्याज (कांदा), लहसुन कन्द, कन्दली, कुहुव्रत, लोहिणी, हुताक्षी, हूत, कुहक, कृष्णकन्द, वज्रकन्द, सूरणकन्द, अश्वकर्णी, सिंहकर्णी, मुसुण्डी और हल्दी इत्यादि अनेक प्रकार के भेद जानने चाहिए। विवेचन - उपरोक्त वनस्पति के नामों में कुछ नाम प्रसिद्ध हैं बाकी नाम अप्रसिद्ध हैं। भिन्न-भिन्न देशों में भिन्न-भिन्न नाम प्रचलित हो सकते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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