Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 440
________________ __४१५ 'जीवाजीव विभक्ति - अंतिम साधना-संलेखना 000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 कठिन शब्दार्थ - बहूणि वासाणि - बहुत वर्षों तक, सामण्णं - श्रमण पर्याय का, अणुपालिया - पालन करके, कम्मजोगेण - क्रम योग से, अप्पाणं - अपनी आत्मा को, संलिहे - संलिखित करे। - भावार्थ - इसके बाद बहुत वर्षों तक श्रमण-पर्याय का (साधुता का) पालन करके मुनि इस आगे कहे जाने वाले क्रमयोग से - तप से अपनी आत्मा को संलिखित करे (द्रव्य से शरीर को और भाव से क्रोधादि कषाय को पतला करे)। विवेचन - द्रव्य से शरीर को तपस्या द्वारा और भाव से कषायों को कृश - पतले करना संलेखना है। संलेखना तभी अंगीकार की जाती है जब साधक का शरीर अत्यंत अशक्त, दुर्बल और रुग्ण हो गया हो कि अब यह शरीर दीर्घकाल तक नहीं टिकेगा या कोई मारणांतिक उपसर्ग हो गया हो। इसी दृष्टि से शास्त्रकार ने कहा है - तओ बहूणि ...........। बारसेव उ वासाई, संलेहक्कोसिया भवे। - संवच्छरं मज्झिमिया, छम्मासा य जहणिया॥२५७॥ कठिन शब्दार्थ - बारसेव - बारह, वासाई - वर्षों की, संलेहा- संलेखना, उक्कोसियाउत्कृष्ट, संवच्छरं- संवत्सर-वर्ष, मज्झिमिया - मध्यम, छम्मासा - छह माह की, जहणिया जघन्य। ... भावार्थ - उत्कृष्ट संलेखना बारह वर्षों की, मध्यम संवत्सर - एक वर्ष की और जघन्य छह महीने की होती है। विवेचन - संलेखना तीन प्रकार की कही गयी है - १. जघन्य २. मध्यम और ३. उत्कृष्ट। जघन्य संलेखना छह माह की है, मध्यम संलेखना एक वर्ष की और उत्कृष्ट संलेखना बारह वर्ष की है। पढमे वासचउक्कम्मि, विगइ णिज्जूहणं करे। बिइए वासचउक्कम्मि, विचित्तं तु तवं चरे॥२५८॥ कठिन शब्दार्थ - पढमे - प्रथम, वासचउक्कम्मि - चार वर्षों में, विगइ णिज्जूहणंविगयों का त्याग, बिइए - दूसरे, विचित्तं - विचित्र, तवं - तप का, चरे - आचरण करे। भावार्थ - पहले के चार वर्षों में घी, दूध आदि विगयों का त्याग करे और दूसरे चार वर्षों में विचित्र तप का आचरण करे। . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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