Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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उत्तराध्ययन सूत्र छतीसवाँ अध्ययन
किल्विषी भावना
णाणस्स केवलीणं, धम्मायरियस्स संघसाहूणं ।
माई अवण्णवाई, किव्विसियं भावणं कुणइ ॥ २७१ ॥
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कठिन शब्दार्थ - णाणस्स - ज्ञान का, केवलीणं - केवली भगवान् का, धम्मायरियस्सधर्माचार्य का, संघसाहूणं - संघ तथा साधुओं का, माई - मायावी, अवण्णवाई - अवर्णवादी, किव्विसियं - किल्विषिक, भावणं - भावना ।
भावार्थ
ज्ञान का, केवली भगवान् का, धर्माचार्य का, साधु-साध्वी श्रावक-श्राविका रूप चतुर्विध संघ का अवर्णवाद करने वाला मायावी ( माया कपट करने वाला) पुरुष किल्विषी भावना करता है। उपरोक्त किल्विषी भावना का सम्पादन करने वाला पुरुष किल्विषी जाति के देवों में उत्पन्न होता है ।
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विवेचन - केवली, श्रुतज्ञान, संघ, धर्म, अरहंत, धर्माचार्य, साधु आदि की निन्दा, . चुगली करना उन्हें बदनाम करना, उनके अवगुण देखना, उनकी छोटी से छोटी त्रुटि का ढिंढोरा पीटना, वंचना या ठगी करना, ये सब. किल्विषी भावना के रूप हैं।
आसुरी भावना
अणुबद्धरोसपसरो, तह य णिमित्तम्मि होइ पडिसेवी । एएहिं कारणेहिं, आसुरियं भावणं कुणइ ॥ २७२ ॥ कठिन शब्दार्थ - अणुबद्धरोसपसरो अनुबद्धरोष प्रसर. सतत रोष की परम्परा को फैलाता रहता है, णिमित्तम्मि - निमित्त में, पडिसेवी - प्रतिसेवी, एएहिं कारणेहिं - इन कारणों से, आसुरियं- आसुरी ।
भावार्थ - जो निरन्तर क्रोध का विस्तार करता है और जो निमित्त में प्रतिसेवी - प्रवृत्ति करने वाला होता है (जो सदा क्रोधयुक्त रहता है और ज्योतिषशास्त्र द्वारा अथवा भूकम्पादि निमित्तों के द्वारा शुभाशुभ फल का कथन करता है) वह जीव इन उपरोक्त कारणों से आसुरी भावना करता है। इस भावना से भावित पुरुष असुरकुमारों में उत्पन्न होता है। ये देव वैमानिक देवों की अपेक्षा बहुत कम सुख और समृद्धि वाले होते हैं तथा परमाधार्मिक देव भी इन्हीं की जाति में से होते हैं।
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