Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 444
________________ जीवाजीव विभक्ति - परित्त-संसारी - ४१६ 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 हैं - १. मिथ्यादर्शन २. निदान ३. हिंसा परायणता ४. कृष्णलेश्या में लीनता। इन दोषों के कारण जीव बार-बार बालमरण से मरता है और उसके लिये सम्यक्त्व प्राप्ति दुर्लभ हो जाती है। ___ इससे विपरीत जो १. सम्यग्दर्शन में दृढ़ २. अनिदान से युक्त ३. शुक्ललेश्या में लीन हैं वे समाधिमरण से मरते हैं और उनके लिये सम्यक्त्व प्राप्ति सुलभ हो जाती है। परित्त-संसारी जिणवयणे अणुरत्ता, जिणवयणं जे करेंति भावेण। . अमला असंकिलिट्ठा, ते होंति परित्त-संसारी॥२६६॥ कठिन शब्दार्थ - जिणवयणे - जिनेन्द्र भगवान् के वचनों में, अणुरत्ता - अनुरक्त, जिणवयणं - जिन वचनों को, भावेण - भावपूर्वक, करेंति - आचरण करते हैं, अमला - अमल - मल से रहित-निर्मल, असंकिलिट्ठा - असंकिलिष्ट, परित्तसंसारी - परित्त संसारीपरिमित संसार वाले। . भावार्थ - जो जीव जिनेन्द्र भगवान् के वचनों में अनुरक्त हैं, जो जिनेन्द्र भगवान् द्वारा कथित क्रियानुष्ठानों को भावपूर्वक (श्रद्धापूर्वक) करते हैं, जो मिथ्यात्वादि भावमल से रहित हैं और रागद्वेषादि संक्लेश से रहित हैं, वे परित्तसंसारी होते हैं। विवेचन - संसार को परिमित (मर्यादित) करने वाले जीव परित्त संसारी कहलाते हैं। वे थोड़े ही भव करके मोक्ष में चले जाते हैं। ... जिनवचनों में अनुरक्ति एवं जिनवचनों की भावपूर्वक जीवन में क्रियान्विती से साधक मिथ्यात्व आदि भाव मल तथा रागद्वेष आदि संक्लेशों से रहित हो जाता है फलस्वरूप वह परित्त संसारी बन जाता है और मोक्ष की ओर तीव्रता से गति - प्रगति करता है। बालमरणाणि बहुसो, अकाममरणाणि चेव य बहूणि। मरिहंति ते वराया, जिणवयणं जे ण जाणंति॥२६७॥ कठिन शब्दार्थ - बालमरणाणि - बाल मरण, बहुसो - बहुत बार, अकाममरणाणिअकाम मरण, वराया - बेचारे, ण जाणंति - नहीं जानते हैं। - भावार्थ - जो जिन वचनों को नहीं जानते हैं वे बिचारे बहुत - अनेक बार बाल मरण और बहुत बार अकाम मरण से मृत्यु को प्राप्त होते रहेंगे। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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