Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 441
________________ उत्तराध्ययन सूत्र - छतीसवाँ अध्ययन एगंतरमायामं, संवच्छरे दुवे | तओ संवच्छद्धं तु, णाइविगिट्ठ तवं चरे ॥ २५६ ॥ कठिन शब्दार्थ - एगंतरं एकान्तर, आयामं अर्द्ध संवत्सर-छह माह, अइविगिट्ठ - अति विकृष्ट- उग्र । भावार्थ - इसके बाद दो संवत्सर- वर्ष तक एकान्तर उपवास और पारणे के दिन आचाम्ल - आयम्बिल करके पुनः अर्द्ध संवत्सर - छह महीने तक अतिविकृष्ट- अति उत्कृष्ट तप न करे (तेला, पचोला आदि न करे ) । विवेचन - बेले से आगे की तपस्याओं को लगातार करे, उसे शास्त्रकार विकृष्ट तप कहते हैं। जैसे कि तेले-तेले पारणा करना इस प्रकार चोले चोले, पंचोले पंचोले आदि विशेष तप करना विकृष्ट तप कहलाता है। तओ संवच्छरद्धं तु, विगिट्ठे तु तवं चरे । परिमियं चेव आयामं, तम्मि संवच्छरे करे ॥ २६० ॥ ४१६ कठिन शब्दार्थ - परिमियं - परिमित । भावार्थ - इसके बाद अर्द्ध संवत्सर-छह महीने तक विकृष्ट- उत्कृष्ट तप (तेला, चोला आदि) करे और फिर उस ग्यारहवें वर्ष में परिमित आचाम्ल-आयम्बिल तप करे । कोडीसहियमायामं, संवच्छरे मुणी । मासद्धमासिएणं तु, आहारेणं तवं चरे ॥ २६१ ॥ कठिन शब्दार्थ- कोडीसहियं - कोटी सहित, मासद्धमासिएणं - एक मास या आधा मास, आहारेणं - आहार का । भावार्थ :- संवत्सर - बारहवें वर्ष में मुनि कोटी सहित, आयम्बिल तप करके फिर एक मास या आधा मास तक आहार का त्याग करके अनशन तप करे । आचाम्ल - आयम्बिल, संवच्छरद्धं विवेचन - प्रश्न इस गाथा में 'कोटी सहित' शब्द दिया है इसका क्या अर्थ है ? उत्तर - पहले प्रत्याख्यान का अन्त और दूसरे प्रत्याख्यान का प्रारम्भ, इस प्रकार दोनों तपों की दोनों कोटी (आदि और अन्त के कोण) मिले उस तप को कोटी सहित तप कहते हैं। जैसे कि निरन्तर आयंबिल तप करते रहना। क्योंकि पहले दिन प्रत्याख्यान किया हुआ आयंबिल दूसरे दिन प्रातःकाल पूर्ण हो जाता है। दूसरे दिन दूसरे आयंबिल का पच्चक्खाण कर लिया जाय तो यह कोटी Jain Education International - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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